यदि हम भारतीय संस्कृति और इसकी साहित्य के तरफ ध्यान दें तो हमारे भारत में ऐसे ऐसे महान कवी अथवा लेखक उपलब्द है जिनकी प्रतिभा के सामने बड़े बड़े हस्ती अपना सर झुकाने केलिए नतमस्तक है, और जयशंकर प्रसाद जी भी उनमे से एक थे, महान कवी जयशंकर प्रसाद हमारे भारत केलिए एक ऐसा वरदान है जिनकी प्रतिभा में आज भी कोई कमी नही है, कख्या ५वि से लेकर १२वि तक और उप ग्राजुएसन तक हिंदी साहित्य में जयशंकर प्रसाद जी की रचनाएँ ठंडी नही हुई है और हर वर्ष इसकी Google में सर्च भी किए जाते है की Jaishankar prasad ka jivan parichay क्या है?
यह दुर्भाग्य की बात है की आज भी हम इतने महान व्यक्ति के बारे में internet पर सर्च करते है की वे कोन थे, क्यों की आज के ज़माने में सभी अत्यधिक उन्नति की और चल पड़े हैं किन्तु असल में वो उन्नति नही एक तरह का गलत रास्ता है, खेर इसके बारे में हम कुछ अधिक बात नही करते हुए चलिए जानते है की जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय क्या है?
जयशंकर प्रसाद का जन्म कब और कहां हुआ था
जयशंकर प्रसाद का जन्म – सन् 1889 ई. में वाराणसी के एक प्रतिष्ठित वेश्य परिवार में हुआ था, जयशंकर प्रसाद का पिता का नाम देवीप्रसाद और माता का नाम मुन्नी था.
जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय

जयशंकर प्रसाद जी का बचपन में माता और पिता के निधन होने पर इन्हें काफी सारे कठिनाई का सामना करना पड़ा, हलाकि इनके माता पिता के पश्च्यात इनके बड़े भाई जयशंकर प्रसाद का देख रेख किआ करते थे किन्तु कुछ समय पश्च्यात वो भी परलोक प्रस्थान किये, और अब जयशंकर प्रसाद के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था, हलाकि जयशंकर प्रसाद के प्रारंभिक सिक्ष्या घर पर ही हुआ था, किन्तु बाद में इन्हें क्वीन्स कॉलेज भेजा गया।
मात्र ८वि कक्ष्या तक पढाई करने के पश्च्यात जयशंकर प्रसाद, ध्यान और लगन के माध्यम से अन्य कई भाषा जेसे संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फारसी और अंग्रेजी इत्यादि का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था, इसीके साथ ही काव्य रचना और नाटक लेखन में भी जयशंकर प्रसाद जी ने अपना योगदान दिया और इसमें भी इन्हों ने अपना खूब नाम कमाया।
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अतः जयशंकर प्रसाद की दृष्टीकोण 1926 ईस्वी से 1929 ईस्वी तक देखने को मिलता है, और यह कई प्रतिभा के मालिक है अर्थात जयशंकर प्रसाद की प्रतिभा बहुमुखी है, इन्होने कई नाटक और कविता लिखी है जो आज भी प्रवाल है, किन्तु जयशंकर प्रसाद की सबसे अधिक ख्याति साहित्य और नाटक लेखक के रूप में है।
Jaishankar prasad ka jivan parichay जी की एक ग्रन्थ “कामायनी” एक ऐसा ग्रन्थ है जिसकी तुलना दुनिया के सर्व श्रेष्ठ काविओं के साथ तुलना किआ जा सकता है, यानि की हमारे भारत में ही इतने तेज्वसी लोग है जिनको यदि ध्यान से देखे या उनके बारे में पढ़ें तो कहीं और जाने की अबश्यक नही पड़ेगी।
दुनिआ की हर श्रेष्ठ ज्ञान हमारे भारत की संस्कृति और इसके इतिहास मे छुपा हुआ है, और हमारे भारतीय ग्रन्थ और ऋषि मुनिओं ने जो लिखी है वो आजके बड़े बड़े बैज्ञानिक भी सुलझा नहीं पाए है।
आज हम जिसे बिज्ञान कहते है उसे हमारे ऋषि मुनिओं ने हजारों वर्ष पूर्ब अपने ग्रन्थ मे लिख दिआ है, तो बिज्ञान बड़ा है या अध्यात्म इन दोनों मे से अध्यात्म मेरे हिसाब से आगे है, वैसे आपका क्या ख़याल है हमें कमेंट करके अबश्य सूचित करें।
जयशंकर प्रसाद जीवन परिचय में और भी कई बात है जिनको केवल एक ही लेखन में लिखा नही जा सकता, किन्तु, आप इस बात से भी अंदाजा लगा सकते है की जयशंकर प्रसाद केवल 9 वर्ष के उम्र में अपने गुरु “रसमय सिद्ध” को एक सवैया लिख कर दिया था जिसका नाम था “कलाघर” और इस बात से पता लगाया जा सकता है की जयशंकर प्रसाद जी की प्रतिभा कितना प्रवाल है।
हलाकि उनके बड़े भाई यह चाहते थे की जयशंकर प्रसाद भी उनके साथ उनके काम में हाथ पटाये, किन्तु जयशंकर प्रसाद की कविता के तरफ आकर्षण को देख कर उन्होंने इस कार्य में पूरी छूट देदी, और अब जयशंकर प्रसाद ने अपने जीवन में काव्य रचना और नाटक लेखन के तरफ ध्यान दिआ।
जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं

वैसे तो Jaishankar prasad ka jivan parichay की काफ़ी सारे रचनाएँ है, और उनका जीवन रचना से भरा हुआ है किन्तु, कुछ ऐसे खास रचनाएँ है जिनको आपको याद रखना चाहिए, जैसे “कामयानी” एक ऐसा महा काव्य है की लोग इसे सबसे अधिक प्रेम करते है, और इस काव्य मे आनंदवाद की नई संकल्प और सन्देश मजोद है।
- झरना
- ऑसू
- लहर
- कामायनी
- प्रेम पथिक (काव्य) स्कंदगुप्त चंद्रगुप्त
- पुवस्वामिनी जन्मेजय का नागयज्ञ राज्यश्री
- अजातशत्रु
- विशाख
- एक घूँट
- कामना
- करुणालय
- कल्याणी परिणय
- अग्निमित्र प्रायश्चित सज्जन (नाटक) छाया
- प्रतिध्वनि
- आकाशदीप
- आँधी. इंद्रजाल(कहानी संग्रह) तथा ककाल तितली इरावती (उपन्यास)
इसके अतिरिक्त जयशंकर प्रसाद ने कई कहानियाँ भी लिखा है जिनके बारे मे आपको जानना चाहिए, अपितु हम आपको उनके बारे मे निचे बताये हुए है, कृपया ध्यान पूर्वक पढ़ें।
जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखी गई कहानियां
- देवदासी
- बिसाती
- प्रणय-चिह्न
- नीरा
- शरणागत
- चंदा
- गुंडा
- स्वर्ग के खंडहर में
- पंचायत
- जहांआरा
- मधुआ
- उर्वशी
- इंद्रजाल
- गुलाम
- ग्राम
- भीख में
- चित्र मंदिर
- ब्रह्मर्षि
- पुरस्कार
- रमला
- छोटा जादूगर
- बभ्रुवाहन
- विराम चिन्ह
- सालवती
- अमिट स्मृति
- रसिया बालम
- सिकंदर की शपथ
- आकाशदीप
जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखी गई कविताएं
- पेशोला की प्रतिध्वनि
- शेरसिंह का शस्त्र समर्पण
- अंतरिक्ष में अभी सो रही है
- मधुर माधवी संध्या में
- ओ री मानस की गहराई
- निधरक तूने ठुकराया तब
- अरे!आ गई है भूली-सी
- शशि-सी वह सुन्दर रूप विभा
- अरे कहीं देखा है तुमने
- काली आँखों का अंधकार
- चिर तृषित कंठ से तृप्त-विधुर
- जगती की मंगलमयी उषा बन
- अपलक जगती हो एक रात
- वसुधा के अंचल पर
- जग की सजल कालिमा रजनी
- मेरी आँखों की पुतली में
- कितने दिन जीवन जल-निधि में
- कोमल कुसुमों की मधुर रात
- अब जागो जीवन के प्रभात
- तुम्हारी आँखों का बचपन
- आह रे,वह अधीर यौवन
- आँखों से अलख जगाने को
- उस दिन जब जीवन के पथ में
- हे सागर संगम अरुण नील
जयशंकर प्रसाद के द्वारा नाटक
- स्कंदगुप्त
- चंद्रगुप्त
- ध्रुवस्वामिनी
- जन्मेजय का नाग
- यज्ञ
- राज्यश्री
- कामना
- एक घूंट
जयशंकर प्रसाद का साहित्य में स्थान

जयशंकर प्रसाद की बचपन से ही साहित्य के प्रति रूचि रही थी और इसीके चलते इन्होने अपना एक अलग ही नाम कमाया है, किन्तु साहित्य जगत में जयशंकर प्रसाद को “इंदु” नामक पत्रिका संपादन करने के बाद मिला, और इनकी प्रेम समर्पण और वलिदान की भावना से भरपूर कहानियां लोगों को उसमे डूबा देती थी और लोग धीरे धीरे प्रसाद के प्रति और खिचे चले गये.
ध्यान दीजिये मैं इहाँ पर “साधक राम प्रसाद” की बात नही कर रहा हूँ जो काली माँ की सबसे बड़े भक्त है, और उन्होंने माँ काली को अपने साथ पाया था, इस बारे में हम किसी और दिन बात करेंगे.
हम बात कर रहे है Jaishankar prasad ka jivan parichay की साहित्य में कयता स्थान है उसके बारे में तो जयशंकर प्रसाद साहित्य में योगदान देने वाले सर्वश्रेष्ठ रचनाकारों में से एक थे। उन्होंने हिंदी साहित्य में अपना बहुत योगदान दिया। उन्होंने अपनी कहानियों,नाटक तथा कविताओं के जरिए हिंदी साहित्य में अपना माधुर्य बिखेरा। राजनीतिक संघर्ष तथा संकट की स्थिति में राजपुरुष का व्यवहार को उन्होंने बड़ी गहराई से समझा और उसे पत्र में लिखा। आधुनिक उपन्यास के क्षेत्र में जयशंकर प्रसाद जी ने यथार्थ और आदर्शवादी रचनाकारों का सूत्रपात किया।
हलाकि आज महान कवी जयशंकर प्रसाद हमारे बिच नही है किन्तु, उनके कविता और नाटक हमें आज भी प्रेरित करती है और आज भी उनके बारे में इन्टरनेट पर सर्च किए जाते है, क्यों की यह साहित्य जगत में वो सुनेहरा कितव हैं जिन्हें कोई बदल नही सकता कोई भुला नही सकता.
जयशंकर प्रसाद की भाषा शैली
हमारे देश के सर्वश्रेष्ठ कलाकारों में से एक Jaishankar prasad ka jivan parichay ने ब्रजभाषा में पद्य लेखन की शुरुआत की। बहरहाल, धीरे-धीरे वे खड़ी बोली की ओर भी बढ़े और भाषा की इस शैली का आनंद लिया। उनकी रचनाओं में घर के करीब, उत्तेजक, सत्यापन योग्य और चित्रात्मक भाषा शैली का उपयोग ज्यादातर पाया जाता है। उनकी शैली अत्यंत मधुर और सरल भाषा में थी जिसे कोई भी आसानी से पढ़ और समझ सकता था।
जयशंकर प्रसाद की किस वर्ष में कौनसी रचनाएं आई?
- 1914 – प्रेमपथिक- 1909
- 1927 – झरना – 1918
- 1928 – करुणालय – 1913
- 1928 – महाराणा का महत्त्व – 1914
- 1928 – चित्राधार – 1918
- 1929 – कानन कुसुम – 1913 पुनः 1918
- 1933 – आँसू – 1925
- 1935 – लहर-
- 1936 – कामायनी
Jaishankar prasad ka jivan parichay में उपन्यास
जय शंकर प्रसाद जी की तीन प्रसिद्ध पुस्तकें हैं – कंकाल, तितली, इरावती। तितली देश जीवन की दृष्टि से जयशंकर प्रसाद की मौलिक है जबकि कंकाल गैर सैनिक कार्मिक विकास का चित्रण करता है।
जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय कक्षा 12
छायावादी काल के प्रवर्तक जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1890 को भारतीय प्रांत उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के एक लोकप्रिय शाहू समृद्ध और प्रसिद्ध परिवार में हुआ था। जयशंकर प्रसाद के पिता का नाम बाबू देवी प्रसाद था। जो असाधारण रूप से दयालु और देखभाल करने वाले व्यक्ति थे, और गरीब लोगों और निराश लोगों को सहायता और नेक काम देते थे। जयशंकर प्रसाद की माता का नाम मुन्नी बाई था। Jaishankar prasad ka jivan parichay के पिता की मृत्यु तब हुई जब जयशंकर प्रसाद केवल 11 वर्ष के थे और तब से 15 वर्ष की आयु में उनकी माता भी उन्हें छोड़कर हमेशा के लिए चल बसीं।
लेकिन जयशंकर प्रसाद की मुश्किलों की झड़ी तब टूटी जब उनके बड़े भाई संभू रत्न का निधन हुआ, उस वक्त जयशंकर प्रसाद की उम्र 17 साल थी। वर्तमान में Jaishankar prasad ka jivan parichay घर के सभी खर्चों के प्रभारी थे, उनकी बहन शादी करके और उनके बच्चे भी उनके घर में थे।
बहरहाल, जयशंकर प्रसाद ने इतनी बड़ी समस्याओं का असाधारण मानसिक धैर्य के साथ सामना किया और अपने प्रियजनों का समर्थन किया। जयशंकर प्रसाद की प्राथमिक शिक्षा वाराणसी में ही पूरी हुई, जयशंकर प्रसाद ने घर पर ही हिंदी और संस्कृत पर ध्यान केंद्रित किया।
जयशंकर प्रसाद के अंतर्निहित शिक्षक मोहिनी लाल गुप्ता थे। जिनकी प्रेरणा से उन्होंने संस्कृत में योग्यता प्राप्त की और संस्कृत के शोधकर्ता बन गए। Jaishankar prasad ka jivan parichay का सबसे यादगार विवाह 1908 में विदवानसादेवी के साथ संपन्न हुआ था। हालाँकि, विधवानदेवी को तपेदिक हो गया और उनकी मृत्यु हो गई और बाद में जयशंकर प्रसाद की दूसरी शादी सरस्वती के साथ 1917 में हुई।
हालाँकि, तपेदिक के कारण उसकी भी जल्द ही मृत्यु हो गई। जयशंकर प्रसाद अपनी दूसरी पत्नी के गुजर जाने के बाद शादी नहीं करना चाहते थे। हालाँकि, अपनी बहन की शादी के संकट से निराश होकर, उन्होंने तीसरी बार कमला देवी से शादी की, जिनसे उन्हें एक बच्चा हुआ। और तो और उनका नाम रतन शंकर प्रसाद था। अपने अंतिम दिनों में Jaishankar prasad ka jivan parichay को भी क्षय रोग हो गया था और 1936 में परलोक सिधार गए।
क्षितिज- पाठ 6 कक्षा 10
1. जयशंकर प्रसाद का जन्म कब हुआ था?
(क) 1886 ई.
(ख) 1879 ई.
(ग) 1883 ई.
(घ) 1895 ई.
उत्तर-(ख) 1889 ई.
2. श्री जयशंकर प्रसाद द्वारा संपादित पत्रिका का नाम क्या है?
(क) प्रभा
(ख) माधुरी
(ग) सरस्वती
(घ) इन्दु
उत्तर-(घ) इन्दु
3.जयशंकर प्रसाद के तीन काव्य संग्रहों के नाम बताए?
उत्तर- लहर झरना कामायनी
4. ईश्वर की प्रशंसा का राग कौन गा रहा है?
उत्तर- तरंगमालाएँ ईश्वर की प्रशंसा का राग गा रही हैं।
5. मनुष्य के मनोरथ कब पूर्ण होते हैं?
उत्तर- ईश्वर की दया होने पर मनुष्य के मनोरथ पूर्ण होते हैं।
6. अंशुमाली का क्या अर्थ है?
उत्तर-अंशुमाली का तात्पर्य सूर्य से है।
जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय कक्षा 10 pdf
FAQs
जयशंकर प्रसाद के ज्येष्ठ भ्राता का क्या नाम था?
जयशंकर प्रसाद के ज्येष्ठ भ्राता का नाम शम्भू रत्न था।
गुंडा किसकी रचना है?
गुंडा जयशंकर प्रसाद जी की रचना है।
झरना के रचनाकार कौन हैं?
झरना नामक कविता जयशंकर प्रसाद जी की रचना है।
जयशंकर प्रसाद का पहला नाटक कौन सा है?
जयशंकर प्रसाद का पहला नाटक राजश्री है।
जयशंकर प्रसाद का अंतिम नाटक कौन सा है?
जयशंकर प्रसाद का अंतिम नाटक ‘कामायनी’ था।
जयशंकर प्रसाद की कौन सी रचना हिंदी का मेघदूत कहलाती है?
‘आँसू’ को ‘हिन्दी का मेघदूत’ कहा जाता है। प्रसाद को ‘प्रेम और सौंदर्य का कवि’ कहा जाता है।
आंसू का प्रकाशन वर्ष क्या है?
आंसू का प्रकाशन वर्ष 1925 था।
आशु कवित्व से आप क्या समझते हैं?
जब कोई कवि किसी अवसर के अनुसार उसी समय कविता बनाकर सुनाएं उसे आशुकवि कहते हैं।
कवि जयशंकर प्रसाद आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहते थे?
यह तो आपको पता चल गया है की जयशंकर प्रसाद के जीवन में कई समाश्या ए है और वो उन सभी समश्याओं में से बहार निकल कर इस मुकाम को छुएं है, और इसी लिए जयशंकर प्रसाद को लगता था की उनके जीवन में ऐसा कुछ खास नही है जो लोगों को आनंद लाभ करा सके, इसलिए कवी जयशंकर प्रसाद आत्मकथा लिखने से बचना चाहते थे.
जयशंकर प्रसाद की मृत्यु कब हुई?
जयशंकर प्रसाद की मृत्यु 15 नवंबर 1937 को हुई थी।
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