नमस्कार मित्रों आजके इस लेख में हम Surdas ka jivan parichay के बारे में जानने वाले है जो बोर्ड परिक्ष्या में बहुत जरुरी विषय है, आज के इस लेख में हम आपको बताएंगे किस तरीके से सूरदास का जीवन परिचय लिख सकते हैं अपने बोर्ड के परीक्षा में क्योंकि लिखता तो हर कोई लिखता है लेकिन, आपको ऐसा क्या लिखना है जिससे आपको आपके परीक्षा में फुल मार्क्स मिल सके, तो मित्रों आज के इस लेख में बने रहे हैं चलिए जानते हैं किस तरीके से आपको Surdas Ka Jivan Parichay अपने बोर्ड के एग्जाम के पेपर में लिखनी है.
Surdas Ka Jivan Parichay
प्रश्न | उत्तर |
---|---|
पूरा नाम | सूरदास |
जन्म | 1540 विक्रमी (सन् 1483 ई.) |
जन्म भूमि | रुनकता, आगरा |
मृत्यु | संवत् 1642 विक्रमी (सन् 1585 ई.) |
मृत्यु स्थान | 1583 ई में ‘पारसौली’ |
अभिभावक | रामदास (पिता) |
कर्म भूमि | ब्रज (मथुरा-आगरा) |
कर्म-क्षेत्र | भक्ति काव्य |
मुख्य रचनाएँ | सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो आदि |
विषय | भक्ति |
भाषा | ब्रज भाषा |
पुरस्कार | महाकवि |
नागरिकता | भारतीय |
महान कवी सूरदास जी की जीवन परिचय में यदि नजर डालें तो हमें हमारे भारत वर्ष पर गर्व होने लगता है की ऐसे ऐसे प्रतिभा से परिपूर्ण व्यक्तिव जन्मे है की जिनके कारण हमारे भारत वर्ष सदेव अपना एक अलग जगह बनता है लोगों के नजर में, इसीलिए कभी भी आपको अपने देश से मुहं नही मोड़ना चाहिए, तो महा कवी सूरदास का जन्म १४७८ में रुनकता नामक ग्राम में हुआ था, इनके पिता का नाम “रामदास” था जो की एक सारस्वत ब्राम्हण थे.

कुछ विद्वानों का यह मानना है की एक स्थान जिसका नाम है “सीही” वो सूरदास का जन्मा भूमि है, और सूरदास जन्म से ही अंधे है या नही इसका प्रमाण सठिक तरीके से किसी के पास नही है, विद्वानों का मानना है की सूरदास अपने बचपन से ही प्रतिभाशाली थे इतना अच्छा मनोवृति और चेष्टा का वर्णन कोई जन्म से अँधा व्यक्ति नही कर सकता है, क्यों की जो जन्म से अँधा होगा उसे बचपन की वो छबी केसे दिख सकता है.
भक्ति ज्ञान और कविता में सूरदास जी को सिरोमणि मन जाता है ऐसा इसलिए क्यों की इनके कविता मन को मोह लेते है, जब सूरदास जी वल्लभाचार्य जी के दर्शन केलिए मथुरा आए थे तब उन्होंने श्री वल्लभाचार्य जी को एक खुद के लिखे हुए कविता के कुछ पद सुनाया था, और तभी वल्लभाचार्य जी ने सूरदास जी को अपना सिष्य बना लिया था, कविता का इतना अच्छा प्रदर्शन भक्ति के मार्ग में इतना अच्छा संकेत केवल सूरदास जी ही दे सकते है. Surdas Ka Jivan Parichay
हलाकि सूरदास जी अंधे थे किन्तु दुनिया इनके उन अंतर आत्मा के आखों से खुद को पाप मुक्त कर सकता है, ऐसा भक्ति की मन मोहक सुगंद केवल सूरदास जी के संगीत से ही मिलता है, एक सुनने से मन नही मानता है, बार बार सुनने को मन करता है, सूरदास जी के भक्ति और पद रचना को देख कर वल्लभाचार्य जी ने उन्हें श्री नाथ का भजन कीर्तन का भर सोंप दिया था और तब से ही सूरदास जी का निवास वो मंदिर बन गया यानि की मथुरा भी आप कहे सकते है.
सूरदास का जीवन परिचय में एक कहानी
सूरदास जी का जीवन परिचय में बहुत सारे बाते अथवा घटना ऐसे है जो आपके मन को मोहित कर सकते है, उनमे से एक है श्री राधा कृष्ण और सूरदास की दृष्टी वापसी की, चलिए जानते है वो कहानी क्या है.
दराह्सल सूरदास जी भगवन श्रीकृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे, और वो नित्य श्रीकृष की आराधना और उनके लीला की पद सुनाया करते थे, अब होता यह है की एक दिन सूरदास मजे में कहीं जा रहे थे और रस्ते में एक सुखा कुआ में गिर गये, उस कुआ में वो 7 दिन तक गिरे रहे और भगवन को आकुलता से बोलने लगे, और श्री कृष्ण आकर सूरदास जी को कुए से बहार निकले. Surdas Ka Jivan Parichay
अब सूरदास जी बहुत रोने लगे वो खुद को कोसने लगे की मैं अपना अराध्य देवता को पास सामने पाकर भी उनके दरसन नही कर सकता, इसी बिच कुछ दिन बीत गये, और एक दिन सूरदास जी को राधा कृष्ण की बात सुनाई देने लगी.

श्री कृष्ण जी रदा रानी को बोल्राहे होते है की और आगे न जाओ सूरदास तुम्हारा पैर पकड़ लेगा, राधा रानी कहेती है की मैं अपना चरण स्पर्श करोंगी, यह केहेकर जब राधा रानी सूरदास जी के पास जाती है तो सूरदास जी उनका पैर पकड़ लेते है, और तब श्री कृष जी कहेते है की आगे से नही पीछे से पका लेगा.
सूरदास जी मन में सोचते है की जब मेरे भगवन ने अनुमति दे दिया है तो पकड़ लेता हूँ, और राधा रानी बोलती है की मुझे छोड़ दो ऐसा कहे कर राधा रानी सूरदास जी से पैर छुडवाती है, किन्तु, उनका पाएल सूरदास जी के हाथ में आजाता है.
कुछ समय बाद राधा रानी वापस आती है और सूरदास से अपना पाएल मांगती है तब सूरदास जी बोलते है की तुम कोण हो मैं तो नही जनता, यदि कोई और आकार फिर से मुझे पाएल मांगता है तो मैं क्या करोंग, जब मैं तुम्हे देखोंगा तबी तुम्हारा पाएल दूंगा. Surdas Ka Jivan Parichay
इसके पश्च्यात श्रीकृष्ण और राधा रानी दोनों मिलकर सूरदास जी को दिव्या दृष्टी प्रदान करते है, तभी सूरदास जी को अपना अराध्य देव का दर्शन प्राप्त होता है, किन्तु, ध्यान देने वाली बात यह है की सूरदास जी तब भगवन से बोलते है .
की हे भगवन आप मुझे फिर से दृष्टी hin कर दीजिये, जिन आखों से मैं आपको देख चूका हूँ उन्ही आखों से मैं इस पापी संसार या अन्य कुछ देखना नही चाहता हूँ, सूरदास जी की यह बात सुनकर भगवन और राधा रानी के आखों में अश्रो आजाते है और धीरे धीरे सूरदास जी के दृष्टी जाने लगती है.
हम इस लेख में केवल Surdas ka jivan parichay ही नही बता रहे है हम यह चाहते है की हमारे हर एक लेख से आप कुछ सीखें इहाँ पर ऐसी ज्ञान मिलती है जो आपके जीवन को बदल सकता है, भगवन श्री कृष्ण महाभारत में कहेते है की हे अर्जुन यदि कोई व्यक्ति खुद को मुझे सोंप देता है तो उसके मन में फिर अन्य कुछ भी चीजें नही रहे जाती है.
संसार तो एक माया जाल है यदि तुम मुझमे लीन हो जाओ तो तुम्हे मोक्ष या राजा होने का इच्छा नही रहेगा, जो मेरा परम भक्त है उसे बड़े बड़े वासना का चट्टान भी नही हिला सकते है, इसलिए मित्रों भक्ति एक ऐसा मार्ग है जिस मार्ग में किसी भी तरह का धन की अबश्यक नही है.
सूरदास जी जो हमारे भारतवर्ष की कविता सिरोमणि है इन्होने भी अपने जीवन में केवल और केवल अपने लक्ष्य को ही ध्यान दिया है, उसके अतिरिक्त अन्य वस्तु को इन्होने अस्वीकार किआ है जेसे इनके आखें.
सूरदास का साहित्यिक परिचय
सूरदास जी अविश्वसनीय प्यारी क्षमता के धनी साहित्यकार थे। उन्होंने कृष्ण के प्रति वचनबद्धता को अपने काव्य का प्राथमिक विषय बनाया। उन्होंने श्रीकृष्ण के सगुण स्वरूप के प्रति सखा भाव की प्रतिबद्धता का चित्रण किया है। उन्होंने वास्तव में मानव हृदय की नाजुक संवेदनाओं को चित्रित किया है। उन्होंने अपनी कविता में गहन पक्ष और रचनात्मक पक्ष दोनों को बदल दिया है।
सूरदास का जीवन परिचय एवं रचनाएँ
भक्त शिरोमणि सूरदास जी ने लगभग सवा लाख छंदों की रचना की थी, जिनमें से मात्र आठ से 10,000 तक ही श्लोक मिले हैं। ये अभिव्यक्तियाँ ‘काशी नगरी प्रचारिणी सभा’ के पुस्तकालय में सुरक्षित हैं। पुस्तकालय में संग्रहित कृतियों के आधार पर सूरदास जी की पुस्तकों की संख्या 25 मानी जाती है, परन्तु उनकी केवल तीन पुस्तकें ही उपलब्ध हो सकी हैं, जो नीचे दी गई हैं:-
सूरसागर : यह सूरदास जी की प्रमुख वास्तविक कृति है। यह एक पद्य गाथा है, जो ‘श्रीमद्भागवत’ ग्रंथ से प्रभावित है। इसमें कृष्ण के युवा जीवन की व्याकुलता, गोपी-प्रेम, गोपी-विरह, उद्धध गोपी संव का असाधारण मानसिक और रसपूर्ण चित्रण है।
सुरसरावली : यह ग्रंथ ‘सूरसागर’ का प्रतिरूप है, जो अभी भी संदेहास्पद स्थिति में है, तथापि यह सूरदास जी की एक विश्वसनीय कृति भी है। इसमें 1107 पद हैं।
साहित्य लहरी: इस ग्रंथ में 118 दृष्टिकूट का संग्रह है और इसमें अधिकांशतः साहसी महिलाओं और छंदों का परीक्षण किया गया है। कहीं-कहीं श्रीकृष्ण के बड़े होने के शौक का चित्रण और कहीं-कहीं ‘महाभारत’ की कथा के कुछ अंश भी दृष्टिगोचर होते हैं।
सूरदास की मृत्यु कब हुआ?
अब बहुतों के मन में यह प्रश्न आ सकता है की क्या सूरदास जी बिवाहित थे? क्यों की हमारा दिमागी ढांचा इस तरह से तेयार हो गया है की यदि कोई संत महात्मा की बात करें तो हम यह सोच लेते है की वो निश्चय ही सन्यासी होगा, जब की ऐसा नही है सूरदास जी बिवाहित नही थे और तो और सूरदास कविता रचना करने से पहेले या यूं कहो की कृष्ण लीला भजन कीर्तन करने से पहेले अपने परिवार के साथ रहेते थे.
वो कहेते है न की संसार का धर्म सबसे बड़ा धर्म है और इसी में ही मोक्ष है, तो मेरे प्यारे मित्रों यदि आप भी अपना जीवन सार्थक करना चाहते है तो कृपया अपने लक्ष्य के तरफ ध्यान दें, सूरदास जी एक महात्मा थे एक ऐसा पुर्न्य जोती थे की अपने कविता के माध्यम से सारा जगत को रोशों कर गये है.
कई साल इन्होने कृष्ण लीला की गाना गाते गाते आखिर में ९५ वर्ष के उम्र में अपना जीवत रूपी शारीर से बिदे लिया, सूरदास का मृत्यु 1583 ई में ‘पारसौली’ नामक ग्राम में हुई थी, और तब अन्य कवी सूरदास जी से आशीर्वाद लेने केलिए पहुंचे थे, तब गोस्वाई वित्कुल नाथ जी ने अन्य अस्त छात्र या कविओं से कहा की आज पुस्ती मार्ग का जहाज जाने वाला है जिसे जो कुछ भी लेना है वो लेलो. इसी तरह से सूरदास जी ने अपना शारीर त्याग किआ, और हमारे भारत वर्ष से एक और पुर्न्य आत्मा खो गया, किन्तु आज भी उनके छात्र चाय में हम सब पल रहे है.
सूरदास की पत्नी का नाम
सूरदास जी की कोई पत्नी नही थी, क्योंकि भक्त सिरोमणि सूरदास ने अपना पूरा जीवन भगवन श्री कृष्ण के गीत और उनके कीर्तन में बितायी थी.
सूरदास का जीवन परिचय PDF
FAQ
सूरदास जी का पूरा नाम क्या है?
कविवर सूरदास जी का असली नाम सुरध्वज था.
सूरदास क्यों प्रसिद्ध है?
सूरदास जी अपने भक्ति कविता केलिए प्रसिद्ध है, सूरदास जी जन्मांध नही थे, क्योंकि अपने कविता में इन्होने जो रंगों का वर्णन किआ हा वो कोई अँधा नही कर सकता, अपने सैम,आय में सूरदास जी श्री कृष्ण की भजन कीर्तन केलिए सबसे प्रिय कवी मने जाते थे, इसलिए सूरदास प्रसिद्ध थे.
सूरदास की प्रमुख रचनाएं
सूरसागर
सूरसारावली
साहित्य-लहरी
नल-दमयन्ती
ब्याहलो
सूरदास के पुरस्कार
कवी सिरोमणि सूरदास जी को महाकवि का पुरस्कार मिला है, कविवर सूरदास जी को एक महान कवी के रूप में जाना जाता है, हिंदी भक्ति गीत में इनका युगदान सबसे ऊपर है, और इनको भगवन श्री कृष्ण के सबसे बड़े भक्त के रूप में भी जाना जाता है.
निष्कर्ष:
तो मित्रों आज हमने Surdas ka jivan parichay के बारे में जाना और यह भी सिखा की जीवन चाहे जेसे भी हो यदि लक्ष्य एक हो और उसकेलिए ही जीवन में प्रयाश किआ जाये तो कुछ भी असंभव नही है, जीवन में त्याग करना सीखें जेसे सूरदास जी ने किआ, अपना दृष्टी पाने के बाद भी उन्होंने उसे त्याग किआ, किन्तु आप सब लडकी के चकर में प्यार महोबत के चकर में समय व्यतीत करते है, ऐसा न करें अपने जीवन को एक दिशा दें, क्योंकि दिशा hin जीवन का कोई मोल नही होता, इस लेख में जुड़े रहेने केलिए धन्यवाद हम आपसे मिलेंगे एक और लेख में तब तक केलिए विदाय दीजिये.
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